Summary of last session (September 30) By Shri Mohan Khandekar
Shri Vijay ji started the session by explaining that Shri Ram is being depicted by Sant Tulsidas ji in Ram Charit Manas as,
1. He is a Jeeva like us
2. He is a reincarnation (अवतार)
3. He is Ishwar
4. He is सच्चीदानंद,परब्रह्म, परमेश्वर,
Following are the notes from Shri Vijay ji. I am adding some of his comments as well.
WE SAW LAST WEEK THAT SANT TULSIDAS JI EXPLAINED MAHATMYA, THE GLORY OF MANY CHARACTER
IN FIRST 30 DOHAS OF RAM CHARIT MANAS, LIKE GURU MAHIMA, SATSANG MAHIMA, RAM NAAM
MAHIMA & NOW MOVING
FORWARD, SANT TULSIDAS JI WRITES RAM KATHA MAHIMA
4.. PAGE 33 – DOHA 29 G, RAM KATHA MAHIMA, GLORY
बरनउँरघुबरबिसदजसु , सुनिकलिकलुषनसाइ॥29 ग॥
भावार्थ:-मैं श्रीरघुनाथजी का निर्मल यश वर्णन करता हूँ, जिसके सुनने से कलियुग के पाप नष्ट हो जाते हैं॥29 (ग)॥
5…PAGE 33 – CHAUPAI 1 – GURU PARAMPARA
चौपाई :
जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई॥
कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी॥1॥
भावार्थ:-
मुनि याज्ञवल्क्यजी ने जो सुहावनी कथा मुनिश्रेष्ठ भरद्वाजजी को सुनाई थी, उसी संवाद को मैं बखानकर कहूँगा,
सब सज्जन सुख का अनुभव करते हुए उसे सुनें॥1॥
16…PAGE 33 – CHAUPAI NO. 2 GURU PARAMPARA STARTED BY LORD SHIVA
संभु कीन्ह यह चरित सुहावा। बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा॥
सोइ सिव कागभुसुंडिहि दीन्हा। राम भगत अधिकारी चीन्हा॥2॥
भावार्थ:-
शिवजी ने पहले इस सुहावने चरित्र को रचा, फिर कृपा करके पार्वतीजी को सुनाया। वही चरित्र शिवजी ने काकभुशुण्डिजी
को रामभक्त और अधिकारी पहचानकर दिया॥2॥
17…PAGE 33 CHAUPAI NO. 3 GURU’S QUALIFICATION
तेहि सन जागबलिक पुनि पावा। तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा॥
ते श्रोता बकता समसीला। सवँदरसी जानहिं हरिलीला॥3॥
भावार्थ:-
उन काकभुशुण्डिजी से फिर याज्ञवल्क्यजी ने पाया और उन्होंने फिर उसे भरद्वाजजी को गाकर सुनाया। वे दोनों वक्ता और
श्रोता ( याज्ञवल्क्य और भरद्वाज ) समान शील वाले और समदर्शी हैं और श्री हरि की लीला को जानते हैं॥3॥
Here, Guru’s and Shishya’s purity and clarity is described. They both are qualified to give and receive the knowledge respectively. This establishes not only the Guru-Shishya Parampara but also Gyan Parampara.
18…PAGE 34 – DOHA 30-A – PARAMPARA OF GYAN, KNOWLEDGE
दोहा :
मैं पुनि निज गुर सन सुनी , कथा सो सूकरखेत।
नहिं तसि बालपन तब , अति रहेउँ अचेत॥30 क॥
भावार्थ:-
फिर वही कथा मैंने वाराह क्षेत्र में अपने गुरुजी से सुनी, परन्तु उस समय मैं लड़कपन के कारण बहुत बेसमझ था, इससे उसको
उस प्रकार ( अच्छी तरह ) समझा नहीं॥30 (क)॥
Due to “lack of interest” Tulsidas ji did not receive the right knowledge in spite of listening the Ram Katha from his Guru many times.
19…PAGE 34 DOHA 30-B – PARAMPARA OF GURU, & GYAN TO ADHIKARI-FIT STUDENT
श्रोता बकता ग्याननिधि , कथा राम कै गूढ़।
किमि समुझौं मैं जीव जड़ , कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥30ख॥
भावार्थ:-
श्री रामजी की गूढ़ कथा के वक्ता ( कहने वाले ) और श्रोता ( सुनने वाले ) दोनों ज्ञान के खजाने ( पूरे ज्ञानी ) होते हैं।
मैं कलियुग के पापों से ग्रसा हुआ महामूढ़ जड़ जीव भला उसको कैसे समझ सकता था?॥30 ख॥
Shri Ram katha is truly a mysterious treasure.
20…PAGE 34 CHAUPAI 1 – SHRAVAN MAHIMA
चौपाई :
तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥1॥
भावार्थ:-
तो भी गुरुजी ने जब बार-बार कथा कही, तब बुद्धि के अनुसार कुछ समझ में आई। वही अब मेरे द्वारा भाषा में रची जाएगी,
जिससे मेरे मन को संतोष हो॥1॥
Here, Tulsidasji commends Guru’s compassion for repeating the Ram story to him.
21…PAGE 37 CHAUPAI 1 – BHAVANI, THE STUDENT ASKED QUESTION & LORD SHIVA IS GURU
चौपाई :
कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी॥
सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथा प्रबंध बिचित्र बनाई॥1॥
भावार्थ:-
जिस प्रकार श्री पार्वतीजी ने श्री शिवजी से प्रश्न किया और जिस प्रकार से श्री शिवजी ने विस्तार से उसका उत्तर कहा,
वह सब कारण मैं विचित्र कथा की रचना करके गाकर कहूँगा॥1॥
22..PAGE 39, CHAUPAI 6 – COMPOSER OF RAM CHARIT MANAS & FIRST GURU LORD SHIVA
रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥6॥
भावार्थ:-
श्री महादेवजी ने इसको रचकर अपने मन में रखा था और सुअवसर पाकर पार्वतीजी से कहा। इसी से शिवजी ने इसको अपने
हृदय में देखकर और प्रसन्न होकर इसका सुंदर ‘ रामचरित मानस ‘ नाम रखा॥6॥
Here, Vijay ji compared Shiv ji keeping the Ram Charit in His mind to Shri Krishna who did not “pass on the
knowledge” for 84 years till He found the right student, Arjun.
23…PAGE 39 CHUAPAI 7 – METHOD OF LISTENING TO RAM KATHA
कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई॥7॥
भावार्थ:-
मैं उसी सुख देने वाली सुहावनी रामकथा को कहता हूँ, हे सज्जनों! आदरपूर्वक मन लगाकर इसे सुनिए॥