Summary of last session (October 7) by Shri Mohan Khandekar
I am forwarding the notes from Shri Vijay ji and adding some of his comments.
वर्णानाम र्थसंघानां, रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ, वन्दे वाणी विनायकौ॥1॥
भवानीशंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति, सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥2॥
वन्दे बोधमयं नित्यं, गुरुं शंकर रूपिणम्।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि, चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥
नानापुराण निगमागम , सम्मतं यद्
रामायणे निगदितं , क्वचिदन्यतोऽपि ।
स्वान्तःसुखाय तुलसी , रघुनाथगाथा-
भाषानिबन्धमति , मञ्जुलमातनोति -7
Tulsidas ji brings Ram Katha to us to develop love for Ram and offer devotion at His feet. The Sant, Mahatmas (संत महात्मा) assure us that just like Hanuman ji, He will reside in our hearts, if we completely surrender to Him.
1…Let’s go to Prayagraj where we left our Ram Katha last week.
2..PRAYAGRAJ MAIN BHARATDWAJ MUNI KA ASHRAM HAI UR MAGH MELE MAIN YAGYAVALKA RISHI
AYE HAIN AUR BHARADWAJ MUNI JI IS ASKING YAGYAVALKA RISHI A QUESTION REGARDING
BHAGAWAN RAM’S IDENTITY.
3.…PAGE 49 CHAUPAI 3 –
रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही॥3॥
भावार्थ:- हे प्रभो! मैं आपसे पूछता हूँ कि वे राम कौन हैं? हे कृपानिधान! मुझे समझाकर कहिए॥3॥
4..PAGE 49 CHAUPAI 4
एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥
नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयउ रोषु रन रावनु मारा॥4॥
भावार्थ:-एक राम तो अवध नरेश दशरथजी के कुमार हैं, उनका चरित्र सारा संसार जानता है। उन्होंने स्त्री के विरह में अपार दुःख
उठाया और क्रोध आने पर युद्ध में रावण को मार डाला॥4॥
5…PAGE 49 DOHA 46
दोहा :
प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ , जाहि जपत त्रिपुरारि।
सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह , कहहु बिबेकु बिचारि॥46॥
भावार्थ:-हे प्रभो! वही राम हैं या और कोई दूसरे हैं, जिनको शिवजी जपते हैं? आप सत्य के धाम हैं और सब कुछ जानते हैं,
ञान विचार कर कहिए॥46॥
6…PAGE 49 CHUAPAI 1 -GURU YAGYAVALKA RISHI ANSWERS
जागबलिक बोले मुसुकाई। तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई॥1॥
भावार्थ:- इस पर याज्ञवल्क्यजी मुस्कुराकर बोले , श्री रघुनाथजी की प्रभुता को तुम जानते हो॥1॥
7..PAGE 50 – TOPIC OF SATI MOHA PRASANG.
चौपाई : 1
एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥
संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी॥1॥
भावार्थ:-एक बार त्रेता युग में शिवजी अगस्त्य ऋषि के पास गए। उनके साथ जगज्जननी भवानी सतीजी भी थीं। ऋषि ने संपूर्ण
जगत् के ईश्वर जानकर उनका पूजन किया॥1॥
8….PAGE 50 – CHAUPAI 2
रामकथा मुनिबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी॥
रिषि पूछी हरिभगति सुहाई। कही संभु अधिकारी पाई॥2॥
भावार्थ:-मुनिवर अगस्त्यजी ने रामकथा विस्तार से कही, जिसको महेश्वर ने परम सुख मानकर सुना। फिर ऋषि ने शिवजी से सुंदर
हरिभक्ति पूछी और शिवजी ने उनको अधिकारी पाकर ( रहस्य सहित ) भक्ति का निरूपण किया॥2॥
9…PAGE 50 – CHAUPAI 3 – WE SHOULD SPEND ONE MONTH IN SOME ASHRAM AWAY FROM HOME FOR
SADHANA
कहत सुनत रघुपति गुन गाथा। कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा॥
मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी। चले भवन सँग दच्छकुमारी।।3।।
भावार्थ:-श्री रघुनाथजी के गुणों की कथाएँ कहते-सुनते कुछ दिनों तक शिवजी वहाँ रहे। फिर मुनि से विदा माँगकर शिवजी दक्षकुमारी
सतीजी के साथ घर ( कैलास ) को चले॥3॥
10…PAAGE 52 – CHAUPAI -2
जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
चले जात सिव सती समेता। पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता॥2॥
भावार्थ:-जगत् को पवित्र करने वाले सच्चिदानंद की जय हो, इस प्रकार कहकर कामदेव का नाश करने वाले श्री शिवजी चल पड़े।
कृपानिधान शिवजी बार-बार आनंद से पुलकित होते हुए सतीजी के साथ चले जा रहे थे॥2॥
11…PAGE 52 – CHAUPAI 3 – LORD SHIVA RECOGNIZE BUT HIS WIFE SATI JI DID’NT RECOGNIZE LORD RAMA
सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी॥
संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥3॥
भावार्थ:-सतीजी ने शंकरजी की वह दशा देखी तो उनके मन में बड़ा संदेह उत्पन्न हो गया। ( वे मन ही मन कहने लगीं कि ) शंकरजी की
सारा जगत् वंदना करता है, वे जगत् के ईश्वर हैं, देवता, मनुष्य, मुनि सब उनके प्रति सिर नवाते हैं॥3॥
12…PAGE 53 – CHAUPAI 4, SATI JI ASKED WHO IS THIS PERSON & LORD SHIVA SAID HE IS OUR
ISHTA DEVATA
जासु कथा कुंभज रिषि गाई। भगति जासु मैं मुनिहि सुनाई॥
सोइ मम इष्टदेव रघुबीरा। सेवत जाहि सदा मुनि धीरा॥4॥
भावार्थ:-जिनकी कथा का अगस्त्य ऋषि ने गान किया और जिनकी भक्ति मैंने मुनि को सुनाई, ये वही मेरे इष्टदेव श्री